सबर आदिम जनजाति :
- सबर झारखण्ड की एक अल्पसंख्यक आदिम जनजाति है।
- इस जनजाति का इतिहास काफी प्राचीन एवं गौरवशाली है।
- लाखों वर्ष पूर्व त्रेता युग में सबर जाति के अस्तित्व का उल्लेख मिलता है।
- प्रजातीय दृष्टि से इन्हें प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड वर्ग में रखा जाता है।
- ये मुख्य रूप से पूर्वी सिंहभूम एवं पश्चिमी सिंहभूम में पाये जाते हैं।
- इसके अतिरिक्त इनकी कुछ आबादी हजारीबाग, धनबाद, गिरिडीह, पलामू, रांची तथा संथाल परगना में भी पायी जाती है।
- इनकी भाषा उड़िया, बांग्ला व हिन्दी है।
- सबर जनजाति चार उपभागों में बांटी गयी है। उनमें केवल जाहरा सबर ही धालभूम क्षेत्र में रहते हैं। अन्य सभी उड़ीसा में पाये जाते है।
- इनका समाज पितृसत्तात्मक होता है।
- इनका आर्थिक जीवन मजदूरी तथा वनों के फल-फूल पर आधारित है।
- इनकी अपनी परंपरागत पंचायत होती है जिसका प्रमुख प्रधान कहलाता है।
- इनका मुख्य पेशा खेती तथा मजदूरी करना है।
खोंड जनजाति :
- यह एक द्रविड़ियन जनजाति है।
- ये कोंधी भाषा बोलते हैं।
- यह जनजाति मुख्य रूप से संथाल परगना में पायी जाती है।
- उसके बाद क्रमशः उत्तरी छोटानागपुर, कोल्हान, दक्षिणी छोटानागपुर तथा पलामू प्रमंडल में पाये जाते हैं।
- इनका मुख्य पेशा खेती और मजदूरी करना है।
- कुटिया खोंड और डोगरिया खोंड स्थानांतरित खेती करते हैं, जिसे पोड़चा कहा जाता है।
- सूर्य देवता में इनकी गहरी आस्था है, जिसे ये लोग ‘बेलापून’ कहते हैं।
- नबानंद, सरहुल, करमा, सोहराई, दीपावली, दशहरा, फागू, रामनवमी आदि, इनके प्रमुख त्योहार हैं।
- नबानंद त्योहार में नये चावल को पकाया जाता है।
- इनके ग्राम्य संगठन का मुखिया गौटिया कहलाता है।
झारखण्ड के आदिवासियों और जनजातियों : click hear to read :
संथाल; उरावं; मुण्डा; हो; खरवार;
खड़िया; भूमिज; लोहरा; गोंड; माहली;
माल पहाड़िया; बेदिया; चेरो; चीक बड़ाइक;
सौरिया पहाड़िया; कोरा; परहिया; किसान;
कोरवा; बिंझिया; असुर; सबर; खोंड;