झारखंड में लगने वाले प्रमुख मेले इस प्रकार है :
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टुसू मेला –
- यह मेला प्रत्येक वर्ष छोटानागपुर के विभिन्न भागों में मकर संक्रांति के बाद लगता है। यह टुसू पर्व पर विसर्जन जुलुस के रूप में लगता हैं। समाज के युवा विसर्जन जुलूस के लिए लकड़ी, बांस और कागज से रंग-बिरंगे लंबे चौड़ल(ताजिया रूपी निशान) बनाते हैं।
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नवमी डोल मेला –
- प्रतिवर्ष चैत्र महीने में कृष्ण पक्ष की नवमी को राँची के समीप टाटीसिलने में लगने वाले इस मेले में राधा-कृष्ण की मूर्तियों की पूजा होती है। इस मेले की प्रमुख विशेषता है की मेले में राधा-कृष्ण की सुन्दर-सुन्दर मूर्तियों को प्रदर्शित किया जाता है एवं उनकी पूजा अर्चना की जाती हैं।
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बिन्दुधाम मेला –
- यह मेला प्रतिवर्ष चैत माह के शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक साहेबगंज से 55 किमी. दूर बिंदुधाम शक्तिपीठ में लगता है। यहाँ माँ विंध्यवासिनी का अति प्राचीन शक्तिपीठ है।
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रामरेखा धाम मेला –
- सिमडेगा जिले में स्थित रामरेखा धाम में कार्तिक माह की पूर्णिमा से तीन दिनों तक यह मेला लगता है।
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हथिया पत्थर मेला –
- बोकारो जिले में फुसरों के समीप हाथी की आकृति वाली चट्टान है, जिसे हथिया पत्थर कहा जाता है। यहाँ मकर संक्रांति के अवसर पर विशाल मेला लगता है।
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हिजला मेला –
- यह प्रत्येक वर्ष के फरवरी माह में शुक्ल पक्ष को दुमका जिले में मयूराक्षी नदी पर लगता है। इसका आयोजन संथाल जनजाति के लोग करते हैं।इसकी की शुरुआत वर्ष 1890 में दुमका के तत्कालीन अंग्रेज उपायुक्त आर कास्टेयर्स ने की थी। ऐसा माना जाता है कि स्थानीय परंपरा, रीति-रिवाज एवं सामाजिक नियमन को समझने तथा स्थानीय लोगों से सीधा संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से मेला की शुरुआत की गई। इसी संदर्भ में “हिजला” शब्द की व्युत्पत्ति भी “हिज लॉज़” (His Law) से मानी जाती है। वर्ष 1975 में संताल परगना के तत्कालीन आयुक्त श्री जी0 आर0 पटवर्धन की पहल पर हिजला मेला के आगे जनजातीय शब्द जोड़ दिया गया । झारखण्ड सरकार ने इस मेला को वर्ष 2008 से एक महोत्सव के रुप में मनाने का निर्णय लिया तथा 2015 में इस मेला को राजकीय मेला का दर्जा प्रदान किया गया, जिसके पश्चात यह मेला राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव के नाम से जाना जाता है ।
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नरसिंह मेला –
- हजारीबाग के नरसिंह नामक स्थान पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर प्रति वर्ष इस मेले का आयोजन किया जाता है।
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एकैसी महादेव मेला –
- राँची जिले में भूर नदी के बीच जलधारा में 21 शिवलिंग हैं, जिसे ‘एकैसी महादेव’ के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति के अवसर पर यहाँ एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।
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बढई मेला –
- देवधर जिले के दक्षिण-पश्चिम में बसे बढई ग्राम स्थित बुढ़ई पहाड़ पर अगहन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को लगने वाले ‘बुढ़ई मेले’ को नवान्न पर्व के रूप में मनाया जाता है।
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गाँधी मेला –
- सिमडेगा जिले में प्रति वर्ष गणतंत्र दिवस से आरंभ होने वाले सप्ताह (26 जनवरी-1 फरवरी) में लगने वाले मेले को ‘गाँधी मेला’ कहते हैं। इस मेले में विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी विभागों द्वारा सामूहिक रूप से एक मनोहारी प्रदर्शनी लगाई जाती है, जिसे ‘विकास मेला’ कहते हैं।
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गणतंत्र दिवस मेला –
- इस मेले का आयोजन वर्ष 1955 से होता आ रहा है। इसका आयोजन गोड्डा में किया जाता है।
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तुर्की एवं सरहुल मेला –
- इसका आयोजन क्रमशः चाईबासा एवं राँची में होता है।
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रथ मेला –
- यह मेला प्रत्येक वर्ष राँची स्थित हटिया के जगन्नाथपुर मंदिर में आषाढ़ माह में आयोजित होता है।
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श्रावणी मेला –
- प्रत्येक वर्ष के श्रावण मास (सावन का महीना) में देवघर में आयोजित यह मेला विश्व का सर्वाधिक अवधि तक चलने वाला मेला है। इसमें श्रद्धालु सुल्तानगंज से जल उठाकर 105 किमी पथरीले रास्ते पर चल देवघर में अवस्थित शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।
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विशु मेला –
- बोकारो में ज्येष्ठ मास की पहली तारीख को विशु मेला लगता है।
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सूर्यकुंड मेला –
- हजारीबाग के सूर्यकुंड नामक स्थान पर मकर संक्रांति के दिन से 10 दिनों तक चलने वाले मेले का आयोजन किया जाता है। इस सूर्यकुंड के जल का तापमान भारत के सभी गर्म जल कुंडों से अधिक (80°C) है।
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पतरही मेला –
- प्रत्येक वर्ष दशहरे से इस मेले का आयोजन चतरा जिले में किया जाता है। यह 15 दिनों तक चलता है।
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मण्डा मेला –
- प्रति वर्ष वैशाख, जेठ एवं आषाढ़ महीने में हजारीबाग, रामगढ़ एवं बोकारो के आस-पास के गाँवों में यह मेला लगता है। इस मेले का सबसे विशिष्ट कार्यक्रम है-अंगारों पर नंगे पाँव चलना। आग पर चलने वाली रात को ‘जागरण’ कहा जाता है तथा दूसरे दिन प्रातः समय मण्डा मेला लगता है।
अन्य मेले – मुडमा मेला (राँची), देवोत्थान मेला (राँची), रानी चुंबा मेला (राँची), चपनी मेला (बरवाडीह), उर्स मेला (गुमला), मांकोमारो पहाड़ मेला (कोडरमा) आदि।
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