वायुमंडल की 80 किमी. की मोटाई में गैसों का मिश्रण लगभग एक सा रहता है। अतः इसे सममंडल (Homosphere) भी कहा जाता है। उसके बाद नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हीलियम व हाइड्रोजन की अलग–अलग आणविक परतें मिलती हैं। इसीलिए इसे विषम मंडल (Hetrosphere) भी कहा जाता है।
यद्यपि वायुमंडल का विस्तार लगभग 10000 किमी. की ऊँचाई तक मिलता है परंतु वायुमंडल का 99% भार सिर्फ 32 किमी. तक सीमित है। वायुमंडल को 5 विभिन्न संस्तरों में बांटकर देखा जा सकता है।
- क्षोभमंडल (Troposphere) : ध्रुवों पर यह 8 किमी. तथा विषुवत रेखा पर 18 किमी. की ऊँचाई तक पाया है। यह मंडल सूर्यताप (लघु तरंग) पारगम्य होता है तथा पार्थिव विकिरण (दीर्घ तरंग) से गर्म होती है क्योकि दीर्घ तरंग (पार्थिव विकिरण) को हरित गृह गैस को अवशोषित कर लेती हैं। इस मंडल में प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1°C तापमान घटता है तथा प्रत्येक किमी. की ऊँचाई पर तापमान में औसतन 6.5°C की कमी आती है। इसे ही सामान्य ताप पतन दर (Normal lapse rate) कहा जाता है। वायुमंडल में होनेवाली समस्त मौसमी गतिविधियाँ क्षोभ मंडल में ही पायी जाती हैं। क्षोभसीमा के निकट चलने वाली अत्यधिक तीव्र गति के पवनों को जेट पवन (Jet Streams) कहा जाता है। विषुवत पर कपासी वर्षी मेघ(cumulonimbus clouds) का निर्माण होता है।
- समताप मंडल (Stratosphere) : इस मंडल में प्रारम्भ में तापमान स्थिर होता है परन्तु 20 किमी. की ऊँचाई के बाद तापमान में अचानक वृद्धि होने लगता है। ऐसा ओजोन गैसों की उपस्थिति के कारण होता है जो कि पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर तापमान बढ़ा देता है। यह मंडल मौसमी हलचलों से मुक्त होता है इसलिए वायुयान चालक यहाँ विमान उड़ाना पसंद करते हैं।
- मध्यमंडल (Mesophere) : इस मंडल की ऊँचाई 50 से 80 किमी. तक होती है। इसमें तापमान में एकाएक गिरावट आ जाता है। मध्य सीमा पर तापमान गिरकर -100°C तक पहुँच जाता है, जो वायुमंडल का न्यूनतम तापमान है। इस मंडल में ग्रीन हाउस गैसों का आभाव होता है। मध्य मंडलीय बादल नोक्टिलुसेंट(Noctilucent) गर्मी के मौसम के द्वरान उच्च अक्षांशो पर देखा जाता है जो उल्का कण और नमी के जमा होने से बनने वाला बादल है।
- आयन मंडल (lonosphere) : इसकी ऊँचाई 80-640 कि.मी. के मध्य है। इसमें विद्युत आवेशित कणों की अधिकता होती है एवं ऊँचाई के साथ तापमान बढ़ने लगता है। यहाँ वायु आयनीकृत आवस्था में आत्याधिक फैली होती है और सूर्य ताप को ग्रहण करती है। उच्च उर्जा की सूर्य किरण और अन्तरिक्ष किरणों हवा के कण को तोड़ देते है – इलेक्ट्रोन और धन आवेशित फोटोन(आयनीकृत) जो मुक्त कण की तरह व्यहार करते है। रात्रि में, केवल अन्तरिक्ष किरण के मौजूदगी के कारण आयनीकरण कमजोर होता है। वायुमंडल की इसी परत से विभिन्न आवृति की रेडियो तरंगे परावर्तित होती हैं। आयनमंडल कई परतों में बँटा हुआ है। ये निम्न हैं:
- D-Layer : इसमें दीर्घ तरंग-दैर्ध्य अर्थात निम्न आवृति की रेडियो तरंगे परावर्तित होती हैं।
- E-Layer : इसे केनेली-हीविसाइड (Kennely-heaviside) परत भी कहा जाता है। इससे मध्यम व लघु तरंग-दैर्ध्य अर्थात मध्यम व उच्च आवृति की रेडियो तरंगे परावर्तित होती है। यहाँ ध्रुवीय प्रकाश (Aurora light) की उपस्थिति होती है। ये उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश (AuroraBorealis) एवं दक्षिणी ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Australis) के रूप में मिलती है।
- F-Layer : इसे एपलेटन (Appleton) परत भी कहा जाता है। इससे मध्यम व लघु तरंग दैर्ध्य अर्थात मध्यम व उच्च आवृति की रेडियो तरंगे परिवर्तित होती है।
- G-Layer : इससे लघु, मध्यम व दीर्घ सभी तरंग दैर्ध्य अर्थात निम्न, मध्यम सभी आवृति की रेडियो तरंगे परावर्तित होती है।
- बाह्य मंडल (Exosphere) : इसकी ऊँचाई 640-1000 कि.मी. के मध्य है। इसमें भी विद्युत आवेशित कणों की प्रधानता होती है एवं यहाँ क्रमशः N., O., He, H, की अलग-अलग परत होती हैं। इस मंडल में 1000 किमी. के बाद वायुमंडल बहुत ही विरल हो जाता है और अंततः 10000 किमी. की ऊँचाई के बाद यह क्रमशः अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है।