In 1969, Whittaker classified all organisms into the following five worlds:
1969 में व्हिट्ट्टेकर(Whittaker) में समस्त जीवों को निम्नलिखित पांच जगत में वर्गीकृत किया :
- मोनेरा (MONERA)
- प्रोटिस्टा (PROTISTA)
- पादप (PLANTAE)
- कवक (FUNGI)
- जन्तु (ANIMALS)
A. MONERA मोनेरा :
All prokaryotic organisms are included in this world. Its creatures are the smallest and simplest. The creatures of Monera world are found in all places where there is a possibility of life. Loss of temperatures up to 800 C, soil, water, air, snowflakes are also suitable for its life.
There are several characteristics behind its omnipresence. Such as: simple composition, micro size and high rate of multiplication, ability to survive in unfavorable environment, various methods of nutrition, ability to make thick-walled endospores, ability to increase the absence of oxygen in some members.

इसके सर्वव्यापी होने के पीछे कई लक्षण प्रमुख हैं। जैसेः सरल रचना, सूक्ष्म आकार तथा गुणन की अधिक दर, प्रतिकूल वातावरण में जीवित रहने की क्षमता, पोषण की विभिन्न विधियां, मोटी भित्ति वाले एण्डोस्पोर बनाने की क्षमता, कुछ सदस्यों में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में वृद्धि करने की क्षमता।
मोनेरा जगत के जीवधारियों के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं –
- इनमें प्रोकेरियोटी प्रकार का कोशिकीय संगठन पाया जाता है। कोशिका में आनुवांशिक पदार्थ किसी प्रकार की झिल्ली द्वारा बंधा नहीं होता है, ये जीवद्रव्य में बिखरा होता है।
- इनकी कोशिका भिति अत्यंत दृढ़ होती है। इसमें पौलिसेकेराइड के साथ-साथ अमीनो अम्ल भी विद्यमान होता है।
- कोशिका द्रव्य में अन्य किसी प्रकार की गति नहीं पायी जाती है।
- केन्द्रिकीय झिल्ली तो अनुपस्थित होती ही है, इसके अतिरिक्त झिल्लियों की सहायता से बने अन्य कोशिकांग जैसे, माइट्रोकाण्ड्रिया, एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम, गाल्जीकाय, रिक्तिका इत्यादि भी नहीं होते। विकसित लवक भी नहीं पाए जाते। श्वसन तथा प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया क्रमश कोशिका कला तथा थायलाकॉइड नामक प्रकाश-संश्लेषी पटलिकाओं द्वारा होती है।
- ये प्रकाश स्वपोषित या रसायन स्वपोषित या परपोषित होते हैं।
- कुछ सदस्यों में वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिर करने की शक्ति पाई जाती है।
Monera kingdom is divide the into four parts to facilitate the study. मोनेरा जगत को अध्ययन की सुविधा के लिए चार भागों में विभाजित करेंगे।
- Bacteria(जीवाणु या बैक्ट्रिया)
- Actinomycetes(एक्टिनोमाइसिटीज)
- Archaebateria(आर्कीबैक्ट्रिया)
- Cyanobacteria:The Blue-Green Algae (सायनोबैक्ट्रिया : नील हरित शैवाल}
1. Bacteria
Bacteria or bacteria were once considered to be plants growing by micro, unicellular fission without chlorophyll.
- There is a strong cell wall around their cells.
- structure of bacteria cell Some bacteria can synthesize organic materials from inorganic materials.
- They can only ingest soluble foods.
- They can synthesize vitamins, while animals cannot.
- The methods of reproduction are similar to those of lower grade plants.
The first description of bacteria was given by Antony von Leuvenhawk in 1676 AD. The word “Bactria” was first used by Ehrenvarg in 1838.
1. जीवाणु (Bacteria)
जीवाणु या बैक्ट्रिया को एक समय पूर्व क्लोरोफिल रहित, सूक्ष्म, एककोशिकीय विखंडन द्वारा प्रजनन करने वाले पौधा माना जाता था क्योंकि-
-
- इनकी कोशिकाओं के चारों ओर एक दृढ़ कोशिका भित्ति होती है।
structure of bacteria cell - कुछ जीवाणु अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण कर सकते हैं।
- ये केवल घुलनशील भोज्य पदार्थों को ग्रहण कर सकते हैं।
- ये विटामिनों का संश्लेषण कर सकते हैं, जबकि जन्तु ऐसा नहीं कर सकते।
- प्रजनन की विधियां निम्नश्रेणी के पौधों जैसी ही हैं।
- इनकी कोशिकाओं के चारों ओर एक दृढ़ कोशिका भित्ति होती है।
परन्तु अब स्पष्ट हो गया है कि जीवाणु वास्तव में पौधे नहीं हैं। सभी जीवाणु प्रौकेरियोटी होते हैं। अतः जीवाणु क्लोरोफिल रहित, एककोशिकीय अथवा बहुकोशिकीय, सूक्ष्म प्रोकेरियोटी जीवधारी हैं।
जीवाणुओं का सर्वप्रथम विवरण एन्टोनी वॉन ल्यूवेनहॉक ने सन 1676 ई. में दिया था। ‘‘बैक्ट्रिया’’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम एहरेनवर्ग ने 1838 में किया था।
2. Actinomycetes:
Actinomycetes are bacteria whose composition is fibrous and branched like a fungal network. Conidia are formed on the front ends of the branches of these fibers, similar to fungi. It was previously considered a fungus due to fibrocyte formation and conidia formation, but due to prokaryotic cell organization they are now considered as bacteria.
2. एक्टिनोमाइसिटीज (कवकसम जीवाणु) (Actinomycetes):
एक्टिनोमाइसिटीज वे बैक्टीरिया हैं जिनकी रचना कवक जाल के समान तन्तुवय व शाखित होता है। इन तन्तुओं की शाखाओं के अग्रस्थ सिरों पर कवकों के समान ही कोनीडिया बनते हैं। तन्तुवय रचना तथा कोनीडिया निर्माण के कारण इसे पहले कवक माना जाता था परन्तु प्रोकेरियोटिक कोशिका संगठन के कारण इन्हें अब जीवाणु माना जाता है।
स्ट्रेप्टोमाइसीज (Streptomyces) इस समूह का एक महत्वपूर्ण वंश है। इससे एक महत्वपूर्ण प्रतिजैविक स्ट्रेप्टोमाइसीन प्राप्त होता है। यह तपेदिक में लाभदायक होता है। स्ट्रेप्टोमाइसीन अतिरिक्त एक्टिनोमासिटीज के अनेक जातियों से विभिन्न प्रकार के प्रतिजैविक जैसे टेट्रासाइक्लिन, क्लोरोमाइसिटीन, इत्यादि प्राप्त किए जाते हैं। इस समूह की परजीवी जातियों से मनुष्यों व पौधों में अनेक रोग होते हैं। प्रमुख मानव रोग हैं तपेदिक, कोढ़, डिफ्रथीरिया तथा सिफिलिस पादप रोगों में गेंहू का तोन्दू या आलू का स्कैब काफी महत्वपूर्ण है।
3. Archaebacteria:
It is a group of different types of prokaryotic organisms whose symptoms are quite different from normal bacteria. Their cell wall is not made of peptidoglycan (Murine), but proteins are made of glycoproteins and polysaccharides. The cell wall of some archaic bacteria is made up of codemurine, which is similar to the murine of normal bacteria. Except for one difference – acetyl muramic acid is replaced by acetyl glucasaminouronic acid. They provide protection against archaebacteria from excessive heat and acidity.
3. आर्कीबैक्टीरिया (Archaebacteria):
यह विविध प्रकार के प्रोकैरियोटिक जीवों का समूह है जिनके लक्षण सामान्य जीवाणुओं से काफी भिन्न होते हैं। इनकी कोशिका भित्ति पेप्टिडोग्लाइकान (Murine) की नहीं बनी होती है बल्कि प्रोटीनों ग्लाइकोप्रोटीनों तथा पोलिसैकेराइडों की बनी होती है। कुछ आर्की बैक्टीरिया की कोशिका भित्ति कूटम्यूरीन की बनी होती है जो कि सामान्य बैक्टीरिया की म्यूरीन जैसी ही होती है। सिवाय एक अन्तर के – ऐसीटाइल म्यूरामिक अम्ल के स्थान पर ऐसीटाइल ग्लूकासीमीनोयूरोनिक अम्ल होता है। ये आर्कीबैक्टीरिया को अत्यधिक ताप व अम्लता से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
विभिन्न परिस्थितियों में भी अपना जीवन यापन करते हैं। जैसे, ऑक्सीजन की अनुपस्थिति, उच्च लवण, सान्द्रता, उच्च ताप, अत्यधिक अम्लता में अपने को सुरक्षित कर लेते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये प्राचीनतम जीवधारियों के प्रतिनिधि हैं। इसलिए इनका नाम आर्कीबैक्टीरिया रखा गया है। इसलिए ही इन्हें ‘‘प्राचीनतम जीवित जीवाश्म’’ कहा जाता है।
4. Cyanobacteria: blue-green algae:
Cyanobacteria are, in fact, gram-negative photosynthetic, single-celled or living or fibrous, prokaryote organisms previously thought to be a group of plants. They are now considered a group of bacteria. Cyanobacteria are generally photosynthetic organisms.
Cyanobacteria are considered to be the Earth’s most successful group of organisms. It is found in all places where oxygen-producing photosynthetic organisms live. A significant amount of red pigment is found in cyanobacteria called Trichodesmium erythrium. These cyanobacteria are found in abundance in the Red Sea and are responsible for its red color. Some cyanobacteria or by staying in the soil stabilize nitrogen (N2 fixation).
When two or more organisms live together in such a way that both benefit from this association, then such associative relationship is called symbiosis. Organisms involved in companionship are called symbiosis. Many species of the Monera world live as symbiotic with other animals.
Many cyanobacteria are found especially in Nostalk and Anabina as symbiosis in Azola, Anthoceros, Cycus and Gannera, etc. It is believed that cyanobacteria provide nitrogen to the host. Cytonia, gliocapsa, nostock, etc. form shacks as symbiotic with cyanobacteria fungi.
4. सायनोबैक्टीरिया : नीले-हरे शैवाल ; (Cyanobacteria: The Blue-Green Algae)
सायनोबैक्टीरिया वास्तव में ग्राम-ऋणात्मक प्रकाश-संश्लेषी, एक कोशिकीय अथवा निवही अथवा तन्तुमय, प्रोकेरियोटी जीवधारी है जोकि पहले पौधों का एक समूह माने जाते थे। इन्हें अब जीवाणुओं का ही एक समूह माना जाता है। साइनोबैक्टीरिया साधारणतया प्रकाश-संश्लेषी जीवधारी हैं।
साइनोबैक्टीरिया को पृथ्वी का सफलतम जीवधारियों का समूह माना जाता है। यह उन सभी स्थानों पर पाया जाता है जहां ऑक्सीजन उत्पादक प्रकाश संश्लेषी जीवधारी निवास करते हैं। ट्राइकोडेस्मियम एरिथ्रीअम नामक साइनोबैक्टीरिया में लाल वर्णक काफी मात्रा में पाया जाता है। ये साइनोबैक्टीरिया लाल सागर (Red Sea) में प्रचुरता में पाए जाते हैं और इसके लाल रंग के लिए यही साइनोबैक्टीरिया उत्तरदायी है। कुछ साइनोबैक्टीरिया या मिट्टी में रहकर नाइट्रोजन का स्थिरीकरण (N2 Fixation) करते हैं।
जब दो या दो से अधिक जीव साथ-साथ इस प्रकार निवास करें कि इस साहचर्य से दोनों को लाभ हो, तो ऐसे साहचर्य सम्बन्ध को सहजीविता(simbaayosis) कहते हैं। साहचर्य में सम्मिलित जीवों को सहजीवी कहते हैं। मोनेरा जगत की कई जातियां अन्य जीवधारियों के साथ सहजीवी के रूप में रहती है।
अनेक साइनोबैक्टीरिया विशेषकर नॉस्टॉक तथा एनाबीना सहजीवी के रूप में एजोला, ऐन्थोसिरोस, साइकस तथा गन्नेरा, इत्यादि में पाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि साइनोबैक्टीरिया द्वारा पोषी को नाइट्रोजन प्रदान की जाती है। साइटोनीया, ग्लिओकैप्सा, नॉस्टॉक इत्यादि साइनोबैक्टीरिया कवकों के साथ सहजीवी के रूप में शैक बनाते हैं।
रोग-उत्पादक मोनेरा
1. पादप रोगः
पादप रोग | रोग उत्पादक बैक्टीरिया |
1. नींबू का कैंकर रोग | जैन्थोमोनास सिट्राई |
2. सेब, गुलाब, टमाटर | एग्रोबैक्टीरियम टयूमीफैसिएन्स का क्राउन गाल |
3. एंगुलर लीफ स्पॉट ऑफ कॉटन | जेन्थोमोनास माल्वेसिएरम |
4. आलू का स्कैब | स्ट्रेल्टोमाइसीज स्कैबीज |
5. चावल की अंगमारी | जेन्थोमोनास ओराइजी |
6. टमाटर, आलू और तम्बाकू का विल्ट | स्यूडोमोनास सोलानेसिएरम |
2. मनुष्य का मुख्य रोग
मुख्य रोग रोग | मुख्य रोग रोग उत्पादक बैक्टीरिया |
1. हैजा | विब्रियों कॉलेरी |
2. अतिसार | बैसिलस कोलाई |
3. डिफ्रथीरिया | कोरिनेबैक्टीरियम डिफ्रथीरी |
4. प्लेग | पास्चुरेला पेस्ट्रिस |
5. निमोनिया | डिप्लोकोकस न्यूमोनी |
6. टिटनेस | क्लोस्ट्रीडियम टिटेनी |
7. तपेदिक | माइकोबैक्टीरियम टयूबरकुलोसिस |
8. टायफॉइड | सैल्मोनेला टाइफी |
9. सिफिलिस | ट्रेपोनेमा पैलिडम |
10. भोजन विषाक्ता | क्लोस्ट्रीडियम बोटुलिज्म या बोटुलिज्म |
11. मेनिन्जाइटिस | निसेरिया मेनिन्जाइटिडिस |
12. कुष्ट रोग | माइको बैक्टीरियम लेप्री |
3. जानवरों के रोग
जानवरों के रोग | रोग उत्पादक बैक्टीरिया |
1. जनवरों का काला पैर | क्लोस्ट्रीडियम कॉविई |
2. भेड़ का एन्थै्रक्स रोग | बैसिलस एन्थ्रेकिस |
B. Protista kingdom :
Protista literally means – first of all. A world separate from the name Protista was conceived in 1866 by the German zoologist EH Heckel for those creatures. Which are neither distinctly plants, nor animals that exhibit symptoms of both. Bacteria, algae and fungi have been included in the protista world. It is believed that this prokaryote is the connective link between monera and multicellular plants, animals and fungi.
General characteristics
- Most protists are aquatic, unicellular and eukaryotic microbes.
- The chromosomes have a clear role in cell division.
- Some protists are photosynthetic, while some are predators or parasites and some are carcinogens.
- The endoplasmic reticulum, Golgi body, mitochondria, nucleus, etc. are surrounded by cell art.
- Occurs by pseudopods or flagellates or pillars.
- Asexual reproduction occurs by bifurcation or multifunction.
- Sexual reproduction occurs by gametes-fusion, ie fusion of two nuclei. But with this, half-point division also becomes necessary so that the number of chromosomes can be reduced to equal to the original number. Semi-point division can occur before or after gamete-fusion.
Protista cell structure: The cells of organisms of the Protista world are eukaryotes. The cell is surrounded by cell art from all around. Most photosynthetic protists such as Chlamydomonas have a hard wall around the cell. Euglina lacks a cell wall but has a protruding membrane around the cell.
All cell membranes are surrounded by clear membranes. Many protists have flagellum for circulation. The structures of flagella also differ from those of prokaryote cells. It contains microtubule 9 + 2, which is the main feature of the flagellum of eukaryotes.
Photosynthetic Protista: Many protists have the ability to photosynthesize. Chlorophyll is present in them and they exhibit many symptoms of plants. They have three major associations: i) dinoflagellates, ii) diatoms, iii) euglena.
More than 80 percent of some photosynthesis that takes place in the entire biosphere is done by the organists of these three associations.
B. प्रोटिस्टा जगत :
प्रोटिस्टा का शाब्दिक अर्थ है – सर्वप्रथम। प्रोटिस्टा नाम से अलग जगत की कल्पना सन 1866 ई. में जर्मन प्राणी शास्त्रा ई. एच. हीकल ने उन जीवधारियों के लिए की थी। जो न तो स्पष्ट तौर से पौधे हैं, न जन्तु अर्थात दोनों के लक्षण प्रदर्शित करते हैं। बैक्टीरिया, शैवाल तथा कवकों को प्रोटिस्टा जगत में सम्मिलित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि ये प्रोकेरियोटी मोनेरा एवं बहुकोशिकीय पादपों, जन्तुओं एवं कवकों के मध्य संयोजी कड़ी है।
सामान्य लक्षण
- अधिकांश प्रोटिस्टा, जलीय, एककोशिकीय तथा यूकैरियोटी सूक्ष्म जीव है।
- कोशिका विभाजन में गुणसूत्रों के द्विगुणन की स्पष्ट भूमिका रहती है।
- कुछ प्रोटिस्टा प्रकाश-संश्लेषी होते हैं जबकि कुछ परभक्षी या परजीवी तथा कुछ मृतोपजीवी होते हैं।
- एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम, गॉल्जीकाय, माइट्रोकाण्ड्रिया, केन्द्रक, इत्यादि कोशिका कला द्वारा घिरे रहते हैं।
- कूटपादों या कशाभिकों या पक्ष्माभ द्वारा प्रचलन होता है।
- अलैंगिक प्रजनन द्विखण्डन या बहुविखण्डन द्वारा होता है।
- लैंगिक प्रजनन युग्मक-संलयन अर्थात दो केन्द्रकों के संलयन द्वारा होता है। परन्तु इसके साथ ही अर्द्ध सूत्री विभाजन भी परमावश्यक हो जाता है ताकि गुणसूत्रों की संख्या घटाकर मूल संख्या के बराबर लाई जा सके। अर्द्ध सूत्री विभाजन युग्मक-संलयन से पूर्व या बाद में हो सकता है।
प्रोटिस्टा कोशिका की संरचनाः प्रोटिस्टा जगत के जीवधारियों की कोशिकाएं यूकैरियोटी होती है। कोशिका चारों ओर से कोशिका कला द्वारा घिरी होती है। अधिकांश प्रकाश संश्लेषी प्रोटिस्टा जैसे क्लेमाइडोमोनास में कोशिका के चारों ओर एक दृढ़ भित्ति होती है। यूग्लीना में कोशिका भित्ति का अभाव होता है परन्तु कोशिका के चारों ओर एक प्रत्यास्थ्य झिल्ली होती है।
सभी कोशिकांग चारों ओर से स्पष्ट झिल्ली द्वारा घीरे रहते हैं। अनेक प्रोटिस्टा में प्रचलन के लिए कशाभिका(Flagellum) होते हैं। कशाभिकाओं के संरचना भी प्रोकैरियोटी कोशिकाओं के कशाभिकाओं से भिन्न होती है। इसमें माइक्रोटयूब्यूलै 9+2 क्रम में विन्यासित होती है जो कि यूकैरियोटी जीवों के कशाभिकाओं का मुख्य लक्षण है।
प्रकाश-संश्लेषी प्रोटिस्टाः अनेक प्रोटिस्टों में प्रकाश संश्लेषण की क्षमता होती है। इनमें क्लोरोफिल उपस्थित होता है तथा ये पादपों के अनेक लक्षण प्रदर्शित करते हैं। इनके तीन प्रमुख संघ हैंः i) डायनोफ्रलैजिलेट्स, ii) डायटम, iii) युग्लीनाभ।
सम्पूर्ण जीवमण्डल में संपन्न होने वाले कुछ प्रकाश-संश्लेषण का 80 प्रतिशत से भी अधिक इन तीनों संघों के जीवधारियों द्वारा किया जाता है।
- डायनोफ्रलैजिलेट(Dinoflagellates): ये एक कोशिकीय कशाभिकी प्रोटिस्टा होते हैं जिनकी कोशिकाओं में भोज्य पदार्थों का संचय स्टार्च या तेल के रूप में होता है। अनेक डायनोफ्रलैजिलेट जीव-संदीप्ति प्रदर्शित करते हैं। रात्रि के समय में समुद्र में ये विशाल संख्या में चमकते हैं जिसके फलस्वरूप समुद्र की सतह जलते हुए अंगारों के समान दिखायी देने लगती है। इसी कारण इनको अग्नि-शैवाल (Fire algae) भी कहते हैं।
- गोन्यालैक्स(Gonyaulax): कुछ अन्य डाइनोफ्रलैजिलेट समुद्र में बड़ी तादाद में फैल जाते हैं जिससे सारा समुद्र लाल दिखने लगता है। इसे लाल ज्वार कहते हैं।
- डायटम (Diatoms): ये एककोशिकीय, अकाशभिकी, सुनहरे पीले शैवाल है। इनकी कोशिका भित्ति जिसे फुस्च्यूल कहते हैं। दो आर्द्धाशों की बनी होती है। एक अर्द्धांश दूसरे पर अतिव्याप्त रहता है। कोशिका भित्ति में सिलिका उपस्थित होता है। भोज्य पदार्थ का संचय तेल के रूप में होता है। तेल के हल्का होने के कारण कोशिका को तैरने में मदद मिलती है।मछली तथा ह्वेल सहित समुद्री जीवों के लिए डायटम भोजन का महत्वपूर्ण स्रोत है। डायटम की कोशिका भित्तियों का प्राकृतिक विघटन आसानी से नहीं होता। इसलिए डायटम की मृत्यु के उपरांत भी ये इकट्ठी होती जाती है। डायटमों की फ्रुस्च्यूलों के बेशुमार भंडार विश्व में अनेक स्थानों पर जम गए हैं। इन्हें डायटमी मृत्तिका (Diatomaceous earth) कहते हैं। इसका निम्न उपयोग किया जा रहा है।
- इसको पीसकर जो पाउडर प्राप्त होता है वह खुरदुरा होता है। इसका उपयोग टूथ-पेस्ट तथा धातुओं की पॉलिश बनाने में किया जाता है।
- विस्पफोटक पदार्थों के निर्माण में नाइट्रोग्लिसरीन को अवशोषित करने के लिए इसे प्रयुक्त किया जाता है।
- अग्नि-प्रतिरोधी होने के कारण इससे विभिन्न प्रकार की उच्च तापीय भट्टियों का निर्माण किया जाता है।
- अम्ल प्रतिरोधी होने के कारण इनका उपयोग अम्लों के संग्रह व संवहन हेतु किया जाता है।
- रन्ध्रीय (Porous) होने के कारण इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के छत्राकों (Filters) के लिए विशेषकर चीनी परिष्करण के लिए किया जाता है।
- यूग्लीनाभ(Euglinabh): ये एककोशिकीय, कशाभिकी प्रोटिस्टा होते हैं जो अलवणीय जलाशयों, खाइयों व नमी वाली मिट्ट्टी में पाए जाते हैं।
इनके निम्नलिखित लक्षण होते हैंः
- प्रकाश-संश्लेषी वर्णक क्लोरोफिल a, b तथा अन्य वर्णक हरे शैवालों के समान होते हैं।
- कोशिकाओं में कोशिका भित्ति नहीं होती है।
- कोशिका का अग्रिम छोर अन्तर्वसित होता है।
- भोज्य पदार्थ एमाइलम के रूप में संचित रहता है।
यह जीवधारियों का एक विलक्षण समूह है क्योंकि ये जीवधारी जन्तुओं एवं पौधों दोनों के लक्षण प्रदर्शित करते हैं।
प्रकाश की उपस्थिति में ये प्रकाश-संश्लेषण करते हैं परन्तु अन्धेरे में इनके क्लोरोप्लास्ट लुप्त हो जाते हैं। यूग्लीना (Euglena) इस समूह का उत्कृष्ट उदाहरण है।
प्रोटोजोअन प्रोटिस्टा या प्रोटोजोआः इस समूह में सम्मिलित जीवधारी सूक्ष्म, एककोशिकीय, एककेन्द्रकीय या बहुकेन्द्रकीय तथा विषमपोषी होते हैं। इसे चार वर्गों में बांटा जा सकता है।
- जूफ्रलैजिलेट्स (Zooflagellates): ये कशाभिकी होते हैं तथा एक या अधिक कशाभिकाओं की सहायता से प्रचलन करते हैं। ये प्रकाश-संश्लेषण नहीं करते तथा भोज्य पदार्थों का भक्षण करते हैं। ट्राइकोनिम्फा तथा मिक्सोट्राइका दीमक की आहार नाल में विद्यमान रहते हैं तथा लकड़ी के कणों को पचाने में सहायक होते हैं। कुछ जूफ्रलैजिलेटस मनुष्य तथा अन्य जन्तुओं पर परजीवी होते हैं। ट्रिपैनोसोमा, मनुष्य में निद्रा रोग तथा लिशमानिया, कालाजार रोग उत्पन्न करते हैं। ये रोग क्रमशः सी-सी मक्खी तथा सैण्ड मक्खी के काटने से फैलते हैं।
- साइर्कोडाइन्स(Sarcodines): इनमें प्रचलन के लिए विशेष रचनाएं पायी जाती हैं जिन्हें कूटपाद कहते हैं। कूटपाद वास्तव में, प्रचलन की दिशा में अस्थायी उभार होते हैं जिनमें जीवद्रव्य भरा जाता है। अमीबा (amoeba) इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। कूटपादों द्वारा प्रचलन को अमीबीय गति कहते हैं।
- स्पोरोजोअन्स(Sporozoans): ये परजीवी प्रोटिस्टा होते हैं। परजीवी जीवन पद्धति के फलस्वरूप इनकी रचना अति सरल हो गई है। इनके जीवनचक्र में बीजाणु या स्पोरोजोइटस की उत्पत्ति होती है। इस संघ का प्रमुख उदाहरण प्लाज्मोडियम जो कि मलेरिया रोग उत्पन्न करता है। प्लाजमोडियम की अवस्था जो संक्रमण कर सकती है, स्पोरोजाइट्स कहलाती है|
- सीलिएट(Ciliates): ये प्रोटिस्टा जीव cilia की सहायता से प्रचलन करते हैं। ये एककोशिकीय होते हैं। चप्पलनुमा पैरामिशियम इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। सीलिएट प्रोटिस्टा बहुत तेजी से गति करते हैं।
सहजीवी प्रोटिस्टा (Symbiotic Protista): अनेक समुद्री अकशेरुकीय जन्तुओं के साथ सहजीवी के रूप में रहते हैं। इसे जूओ-जैन्थली कहते हैं।
प्रोटोजोआ जनित रोग | |||
रोग | परजीवी | रोगवाहक | लक्षण |
अफ़्रीकी निद्रालु व्याधि | ट्रिपैनोसोमा | सी-सी-मक्खी | रुधिर एवं तंत्रिका उत्तक मनुष्य अत्यधिक निद्रा का अनुभव करता है, उसकी मृत्यु भी हो सकती है। |
अमीबी पेचिश | एन्टअमीबा हिस्टोलिटिका | दूषित जल खाद्य द्वारा संक्रमणद्ध | वृहदांत्रा(आंत्रा) रुधिर के साथ दस्त उदर में पीड़ा भी हो सकती है। |
प्रवाहिका | गिआर्डिया | संदूषण द्वारा संक्रमण | पाचक तन्त्रा अव्यवस्थित, दस्त एवं वमन पैदा करता है। |
कालाजार | लीशमैनिया डोनोवेनाई | सैंड फ्रलाई | तिलली एवं यकृत बढ़ जाता है और तेज बुखार होने लगता है। |
ल्यूकोरिया | वैजीनेलिस ट्राइकोमोनास | मैथुन द्वारा लैंगिक | स्त्रा की योनि से श्लेषमा का श्वेत स्रव रूप से पारगत |
मलेरिया | प्लाजमोडियम | मादा ऐनोफेलीज | तेज बुखार का बार-बार आना, दर्द के साथ शीत अनुभव, अधिक पसीना एवं तेज नब्ज धड़कना |
पाइरिया का त्वरण | एण्टअमीबा जिंजिंवेलिस | संक्रमण चुम्बन द्वारा | मसूड़ों से रुधिर निकलना |
C. Plantae Kingdom पादप जगत :
All multicellular, photosynthetic, eukaryotes, producing organisms of the biosphere are kept in the plant world. It includes two types of organisms.
- Mainly aquatic (marine and alluvial algae – red, brown and green algae)
- All those terrestrial plants have convection mechanisms to carry water to all the main parts. Since the composition of the convection tubes of these plants is similar to the trachea found in animals, these plants are also called tracheophytes. These are also of three types –
- Envelope seed – in which seeds are produced inside the fruit.
- NudeBG – In which the seeds are naked.
- Pteridophyte – in which neither flowers nor seeds are formed, only spores are formed in spores.
जीवमण्डल के सभी बहुकोशिकीय, प्रकाश-संश्लेषी, यूकैरियोटी, उत्पादक जीवों को पादप जगत में रखा जाता है। इसमें दो प्रकार के जीवों को शामिल किया जाता है।
- मुख्यतः जलीय (समुद्री तथा अलवणीय शैवाल-लाल, भूरे तथा हरे शैवाल)
- वे सभी स्थलीय पौधे के सभी मुख्य भागों तक जल को पहुंचाने के लिए संवहन तंत्रा विद्यमान होता है। चूंकि इन पौधों की संवहन नलिकाओं की रचना जन्तुओं में पाए जाने वाली श्वास नली ट्रेकिया से मिलती-जुलती है, इन पौधों को ट्रेकियोफाइट भी कहते हैं। ये भी तीन प्रकार के होते हैं-
-
- आवृतबीजी – जिसमें बीजों का निर्माण फल के अन्दर होता है।
- नग्नबीजी – जिसमें बीज नग्न होते हैं।
- टेरिडोफाइट – जिसमें न तो पुष्प और न ही बीज बनते हैं, केवल बीजाणुधानियों में बीजाणु बनते हैं।
शैवाल(Algae): शैवाल सर्वाधिक आद्य (Primitive) पौधों का विशाल समूह है। सम्भवतः अत्यधिक सरल, एककोशिकीय शैवाल ही सबसे पहले उत्पन्न होने वाले पौधे थे। उनकी काया को जड़ तना तथा पत्तियों में विभेदित नहीं किया जा सकता। ऐसी काया को थैलाभ (Thallus) कहते हैं।
शैवालों के लक्षण इस प्रकार हैंः
- इसका शरीर थैलाभ होता है अर्थात् यह जड़, तना तथा पत्तियों में विभेदित नहीं होता है।
- इनकी कोशिकाओं में पर्णहरित( chlorophyll) पाया जाता है। जिसकी सहायता से ये प्रकाश-संश्लेषण कर सकते हैं अतः यह स्वपोषित होते है
- इनके शरीर में संवहनी उतक नहीं पाया जाता है।
- कुछ अपवादों को छोड़कर सभी शैवालों के जननांग एककोशिकीय होते हैं।
- निषेचन के बाद भ्रूण का निर्माण नहीं होता है।
शैवालों का वर्गीकरणः अध्किंश शैवालों में विशेष प्रकार के रसायनिक यौगिक पाए जाते है जोकि कोशिकाओं को विशिष्ट रंग प्रदान करते हैं। इन्हें वर्णक (Pigments कहते हैं। शैवालों में प्रायः चार प्रकार के Pigments पाए जाते हैं।
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- क्लोरोपफिल(Chlorophyll-5 प्रकार के)
- जैन्थोफिल(Xamthophyll-20 प्रकार के)
- कैरोटीन(Carotene-5 प्रकार के)
- फाइकोबिलिन(Phycobilin-6 प्रकार के) जिसमें फाइकोसायनिन(Phycocyanin) नीला तथा फाइकोइरिथ्रिन(Phycoerythrin) लाल प्रमुख हैं।
पादप जगत के अन्तर्गत शैवालों के तीन समूह हैं-
1. लाल शैवाल (Red Algae): शैवालों के इस समूह को लाल शैवाल कहते हैं क्योंकि इनकी कोशिकाओं में R फाइकोइरिथ्रिन नामक लाल वर्णक प्रचुर मात्रा में होता है जो क्लोरोफिल a के हरे रंग को दबा देता है जिससे ये शैवाल लाल रंग के दिखाई पड़ते हैं। इन्हें पादप जगत के प्रभाग रोडोफाइटा(Rhodophyta) में रखा गया है। अधिकांश लाल शैवाल समुद्री होते हैं यद्यपि कुछ जातियां अलवण जलीय होती है। गहरे समुद्र में लाल शैवाल और अधिक गहरे रंग की हो जाता है क्योंकि लाल शैवाल और अधिक फाइकोइरिथ्रिन का संश्लेषण करते हैं जिससे ये गहरे लाल हो जाते हैं। इसके विपरीत, उथले जल में क्लोरोफिल अधिक मात्रा में उपस्थित होने के कारण ये कम लाल दिखते हैं।
लाल शैवालां की रचना में काफी विविधता पाई जाती है। इस समूह में एक कोशिकीय सूक्ष्म से लेकर बड़े सदस्य पाए जाते हैं। कुछ सदस्यों की भित्तियों पर कैल्शियम कार्बोनेट स्रावित होकर जम जाता है जिससे प्रवाली रचनाएं बन जाती हैं। कुछ प्रवाल भित्तियां (Coral-reefs) लाल शैवालों द्वारा ही बनी है। कुछ लाल शैवाल रंगहीन तथा परजीवी होते हैं जैसे हार्वेएल्ला(Harveyello) जो कि अन्य लाल शैवालों पर परजीवी है।
जिलीडियम(Gelidium) तथा ग्रेसीलेरिया (Gracilaria) नामक लाल शैवालों से अगर-अगर(Agar-Agar) का औद्योगिक उत्पादन किया जाता है। यह जिलेटिन जैसा पदार्थ होता है। किसी द्रव्य में इसे मिलाकर गरम करके तथा फिर ठण्डा करने पर द्रव्य का ठोस में परिवर्तन हो जाता है। इसका उपयोग प्रयोगशाला में सूक्ष्मजीवों का संवर्धन करने में तथा अनेक खाद्य पदार्थों में बन्धक(bindes) तथा प्रगाढ़क(Thickner) के रूप में किया जाता है। कैरागीनिन(Carragheenin) का भी खाद्य पदार्थों में इसका प्रयोग किया जाता है।
2. भूरे शैवाल(Brown Algae): इस समूह के शैवालों की कोशिकाओं में सामान्य वर्णकों के अतिरिक्त फ्रयूकोजैन्थिन (Fucoxanthin) नामक भूरा वर्णक पाया जाता है जिसके कारण ये शैवाल भूरे रंग के दिखाई पड़ते हैं। इन्हें पाद जगत के प्रभाग फीओफाइटा (Phaeophyta) में रखा जाता है। इस प्रभाग में लगभग 200 वंश तथा 2,000 जातियां हैं।
कुछ जातियों को छोड़कर सभी भूरे शैवाल समुद्री होते हैं। ये प्रायः ठण्डे जल में पाए जाते हैं। सारगैसम(Sargassum) उष्ण जल में पाए जाने वाला सर्वविदित शैवाल है। ये जहाजों की पेंदी में उलझकर उनके आवागमन में अवरोध पैदा करते हैं। अधिकांश भूरे शैवाल असूक्ष्म होते हैं अर्थात् उन्हें बिना किसी यन्त्र की सहायता से देखा जा सकता है।
भूरे शैवालों का थैलाभ प्रायः 3 भागों में विभेदित किया जा सकता है। (i) स्थापनांग(Holdupfast) (ii) वृन्त(Stipe) तथा (iii) लैमिना। इसमें भोज्य पदार्थों का संचय लैमिनेरिन तथा मैनिटोल के रूप में होता है।
आर्थिक महत्व : सारगैसम, लैमिनेरिया, फ्रयूकस इत्यादि भूरे शैवालों का इंग्लैंड तथा जापान में चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। जापान में कोम्बु नामक खाद्य पदार्थ लैमिनेरिया नामक भूरे शैवाल से बनाया जाता है। भूरे शैवाल में ऐलजिनिक अम्ल प्राप्त किया जाता है। इसमें समस्धैतिक गुण होते हैं। अतः इनका उपयोग आपातकालीन आधान(Emergency Transfusion) में किया जाता है। सोडियम ऐलजिनेट का उपयोग खाद्य उद्योग में तथा कैल्शियम ऐलजिनेट का उपयोग प्लास्टिक उद्योग में किया जाता है। एलैजिनिक अम्ल विभिन्न रूपों में वस्त्रा उद्योग, रबर उद्योग तथा पेण्ट उद्योग में और आइसक्रीम बनाने में उपयोग किया जाता है।
3. हरे शैवाल (Green Algae): इस समूह के शैवालों में अन्य शैवालों की तुलना में क्लोरोफिल अधिक प्रभावी होता है। इसी कारण ये हरे रंग के दिखाई पड़ते हैं। इसको क्लोरोफाइटा में रखा जाता है। इस प्रभाग में लगभग 7,000 जातियां सम्मिलित हैं। क्लैमाइडोमोनास, वॉल्वॉक्स तथा स्पाइरोगाइरा जलाशयों के अलवणीय जल में निवास करते हैं जबकि अन्य जैसे अल्वा, कौल्पी तथा कोडियम समुद्री जल में पाए जाते हैं। कुछ शैवाल जन्तुओं के साथ सहजीवी होते है। जैसे हाइड्रा(Hydra) में जूक्लोरेला(Zoochlorella) अनेक हरे शैवाल कवकों के साथ मिलकर शैक(lichess) का निर्माण करते हैं। सिफेल्यूरोस(Cephlaleuros) इस समूह का परजीवी सदस्य है इसमें क्लोरोफिल नहीं होता है।

इस वंश की अनेक जातियां विभिन्न पौधों पर अतिक्रमण करती है। चाय और कॉफी के पत्तियों पर यह लाल किट्ट (Red rust) नामक रोग उत्पन्न करती है। हरे शैवालों के निम्नलिखित लक्षण हैं।
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- कोशिका भित्ति सेलुलोज की बनी होती है।
- कोशिकाओं में हरित लवक पाए जाते हैं जिनकी संख्या तथा आकृति विभिन्न वंशों में भिन्न-भिन्न होती है। क्लोरोपफिल a, b तथा सूक्ष्म मात्रा में कैरोटिनॉइड भी क्लोरोप्लास्ट की ग्रेना में विद्यमान होती है।
- भोज्य पदार्थ स्टार्च के रूप में संचित रहते हैं। यद्यपि कुछ वंशों में यह तेल के रूप में होता है।
- कायिक प्रजनन प्रायः खण्डन द्वारा होता है। कुछ एककोशिकीय हरे शैवाल केवल कोशिका विभाजन द्वारा प्रजनन करते हैं।
Bryophyta: is the simplest terrestrial plant group. Vegetation is a large section of the world. This includes all the plants that do not have actual vascular tissue, such as mosses, hornworts and liverworts, etc. This division covers about 25,000 species.
लिवरवर्ट Liverwort | हरिता या मॉस Mosses |
1. मूलाभास(Rhizoids) एककांशिकीय हौते है।
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1. मूलाभास(Rhizoids) बहुकोशिकीय हौते है।
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2. गैमिटोफम्हट चपटा थैलाभ अथवा पर्णिल होता है।
The gametophyte is a flattened bag or petiole. |
2. गैमिटोफाइट सर्पिल तथा लिवरवटों की अपेक्षा अधिक विभेदित होता है।
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3. पर्णिल सदस्यों मैं पत्तियां सर्पिल क्रम में नहीं होती है।
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3. पत्तियां सर्पित क्रम में लगी होती हैं।
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4. बीजों विकिरण के लिए कैप्सूल का फटना पड़ता है। इलेटर विकिरण मैं सहायक होते हैं।
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4. बीजों के विकिरण के लिए कैप्सूल में ‘भली-भांति विकसित तंत्र होता है। इलेटर का अभाव होता है |
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Importance of Bryophyta:
ब्रायोफाइटा का महत्वः
- लाइकेन के सहयोग से ब्रायोफाइट चट्टानों की सतह पर एक परत बनाते हैं। इनकी मृत्यु होने से चट्टानों पर ह्यूमस(Humus) की एक पर्त जम जाती है जिस पर अन्य पौधे उग सकते हैं। इससे पादपों का अनुक्रमण प्रारंभ हो जाता है। चूकि मॉस इसे प्रारंभ करने के लिए उत्तरदायी है अतः मॉस को स्थल वनस्पति का पुरोगामी कहते है।
- भूमि पर एक जाल-सा बिछाकर मॉस के पौधे भूमि को अपरदन से बचाते हैं। इससे भूमि का उपजाऊपन बढ़ जाता है।
- स्फैगनम(Sphagnum) नामक एक अन्य मॉस में अपने स्वयं के भार से 18 गुणा अधिक पानी सोखने की क्षमता होती है। इसलिए माली इसका उपयोग पौधों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते समय सूखने से बचाने के लिए करते हैं।
- कोयले जैसा ही एक ईंधन स्फैगनम के पौधों के हजारों वर्ष तक दबकर जीवाश्मीकरण के फलस्वरूप ही बनता है।
- प्रतिरोधी अर्थात् ऐण्टिसेप्टिक होने के कारण स्फैगनम का उपयोग सर्जिकल ड्रेसिंग के लिए किया जाता है। स्फैगनम के पौधों से स्पफैगनॉनाल के लिए किया जाता है। स्पफैगनम के पौधों से स्पफैगनॉनाल नामक प्रतिजैविक प्राप्त किया जाता है।
- स्पफैगनम की कुछ जातियां पैकिंग पदार्थ के रूप में प्रयोग में आती है।\
Pteridophyta:
The most common of vascular plants. Around 10,000 castes of club moss horse tail and different types of furnaces are included in this group.
Main characteristics:
- The life cycle consists of two phases or generations: one sporophyte and the other gametophyte. The main or dominant plant in the life cycle is sporophyte.
- The sporophyte is differentiated into the actual root, stem and leaves containing the vascular tissue.
- Leaves are relatively small or large. Accordingly, the plants are called truncated or elongated respectively.
- Asexual reproduction in sporophyte occurs by spores that form inside specialized structures called spores.
- All the spores are either of the same type, ie, or there are two types of ascomycetes. Accordingly, plants are called isosceles or isosceles.
- Gametophyte is very short, simple prothallus.
टेरिडोफाइटा(Pteridophyta)
संवहनी पौधों में सबसे आद्य है। क्लब मॉस होर्स टेल तथा विभिन्न प्रकार के फर्नों की लगभग 10,000 जातियां इस समूह में सम्मिलित की जाती है।
मुख्य लक्षणः
- जीवन चक्र में दो प्रावस्थाएं या पीढ़ियां होती हैं : एक स्पोरोफाइट तथा दूसरी गैमिटोफाइट। जीवन चक्र में मुख्य या प्रभावी पौधा स्पोरोफाइट होता है।
- स्पोरोफाइट संवहनी ऊतक युक्त वास्तविक जड़, तना तथा पत्तियों में विभेदित रहता है।
- पत्तियां अपेक्षाकृत छोटी अथवा बड़ी होती है। तदनुसार पौधे क्रमशः लघुपर्णी अथवा दीर्घपर्णी कहलाते हैं।
- स्पोरोफाइट में अलैंगिक प्रजनन बीजाणुओं द्वारा होता है जो बीजाणुधानी नामक विशेष संरचनाओं के अंदर बनते हैं।
- सभी बीजाणु या तो एक ही प्रकार के अर्थात समबीजाणु होते हैं अथवा दो प्रकार के असमबीजाणु होते हैं। तदनुसार, पोधे समबीजाणुवीय अथवा असमबीजाणुवीय कहलाते हैं।
- गैमिटोफाइटा अति लघु, साधारण प्रोथैलस होता है।
The Seed Plants:
बीजी पादप(The Seed Plants)
बीजी पादपों की लगभग 2,51,000 जातियां पृथ्वी पर आजकल विद्यमान पौधे में अपना प्रभुत्व जमाए हैं। स्थल पर जीवन-यापन में ये काफी सफल हुए हैं तथा इन्हें पादप जगत के स्पेर्मेटोफाइटा(Spermatophyta) प्रभाग में रखा जाता है।
बीजी पादपों के मुख्य लक्षणः
- ये विषम बीजाणुवीय (Letrosporous) होते हैं अर्थात ये दो प्रकार के बीजाणु उत्पन्न करते हैं – 1. लघुबीजाणु जिसे परागकण भी कहते हैं 2. गुरु बीजाणु जिसे भ्रूण कोष भी कहते हैं।
- भू्रणकोष पूरी तरह से बीजाणुधानी जिसे बीजाण्ड(Ovule) कहते हैं, के अन्दर पूरी तरह सुरक्षित रहता है।
- निषेचन के पश्चात बीजाण्ड विकसित होकर बीज(Seed) बनाता है।
- जीवन चक्र में मुख्य पौधा स्पोरोफाइट प्रावस्था में ही होता है। गैमिटोफाइट अत्यन्त अल्पविकसित होता है।
- नर युग्मक बीजाण्ड तथा पराग नलिका द्वारा पहुंचाए जाते हैं।
- जड़, तने तथा पत्तियों में संवहनी ऊतक भली-भांति विकसित होते हैं।
बीजी पौधों को दो समूहों में बांटा जाता है:

- नग्नबीजी(Gymnosperms) : वे पौधे हैं जिनमें बीजाण्ड जो कि बाद में विकसित होकर बीज बनाते हैं गुरु बीज पर्णों पर खुली हुई स्थिति में उत्पन्न होती है तथा किसी प्रकार की संरचना में बन्द नहीं होते। गुरुबीजपर्ण शंकु के रूप में प्रायः व्यवस्थित होते हैं। नग्नबीजियों की लगभग 500 जातियां शंकुधारी पौधे है, जिन्हें कोनीफर कहते हैं। सभी नग्नबीजी बहुवार्षिक होते हैं। ये प्रायः वृक्ष होते हैं जो सदाबहार वन होता है। नग्नबीजी का आर्थिक महत्वः
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- अनेक कोनीफर से लकड़ी प्राप्त होती है जिनसे प्लाईवुड, फर्नीचर के सामान तैयार होते हैं।
- पाइनस व सीड्रस देवदार की लकड़ी का उपयोग इमारतें बनाने में होते हैं। जूनिपेरस की लकड़ी का उपयोग पेंसिल तथा पेन होल्डर बनाने में होता है।
- पीसिया, ऐबीज तथा क्रिप्टोमेरिया की काष्ट की लुगदी से कागज तैयार किया जाता है।
- चीड़ या पाइन से रेजिन, तारपीन का तेल, इत्यादि भी प्राप्त होते हैं।
- पाइनस के बीज जिसे चिलगोजा कहते हैं खाने के काम आते हैं।
- एफ्रिडा से एफीड्रीन नामक औषधि् तैयार की जाती है।
- प्रयोगशालाओं में उपयोग में निर्जलक के रूप में सेडारवुड आयल, जूनीपेरस, वर्जीनिया की अन्तःकाष्ट से प्राप्त होता है।
- आवृत्तबीजी(Angiosperm): इसका अर्थ है आवरण से घिरे बीज। इन पौधों के बीज तथा बीजाण्ड, अंडाशय के अन्दर विकसित होते हैं। साथ ही वायु परागण में परागकणों की व्यर्थ की हानि को रोकने के लिए आकर्षक अंग विकसित हुए जिससे की कीट, पक्षी तथा जन्तु आकर्षित होकर परागण की क्रिया में भाग ले सके।
आवृत्तबीजियों का वर्गीकरणः
पुष्पीय पौधों को दो मुख्य समूहों – एकबीजपत्री एवं द्विबीजपत्री में बांटा जाता है जैसा कि नाम से स्पष्ट है, इस वर्गीकरण का मुख्य आधार बीज में बीजपत्रों की संख्या से है।
कवक((Fungi): परम्परागत द्विजगत वर्गीकरण में कवकों को पादप माना जाता था परन्तु अब इसे एक अलग वर्ग दे दिया गया है।
सामान्य लक्षणः
- इनका शरीर प्रायः लम्बी, पतली धागे के समान रचनाओं जिन्हें कवक तन्तु ;या कवक सूत्राद्ध मिलकर कवक जाल का निर्माण करते हैं।
- पर्णहरित(chlorophyll) के अभाव के कारण ये प्रकाश संश्लेषण नहीं कर पाते। अतः ये विषमपोषी-परजीवी मृतोपजीवी या सहजीवी होते हैं।
- इनमें पोषण अवशोषण द्वारा होता है। ये अपने चारों ओर के माध्यम से विकर स्त्रावित करते हैं। ये विकर जटिल कार्बनिक अणुओं को सरल कार्बनिक अणुओं में अपघटित कर देते हैं जिनको कवक तन्तु की सतह पर से अवशोषित कर लिया जाता है।
- दृढ़ कोशिका भित्तियों में प्रायः काइटिन विद्यमान होती है।
- भोज्य पदार्थों का संचय ग्लाइकोजन के रूप में होता है।
- कोशिका संगठन यूकैरियोटी होता है।
- प्रजनन विशेष प्रकार के बीजाणुओं द्वारा होता है।
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1. There are single unicellular or fibrous fungi. Fibers are often laceless. 1. एक कोशिकीय अथवा प्रायः तन्तुमय कवक होते हैं। तन्तु प्रायः पटविहीन होते हैं। 2. Sexual reproduction leads to the formation of thick mural, nishtikand and yugamnu. 2. लैंगिक प्रजनन के फलस्वरूप मोटी भित्ति युत्त निषिक्ताण्ड तथा युग्माणु का निर्माण होता है। |
1. Fibrous fungi. Fungi-sutra are patyut. 1. तन्तुमय कवक होते हैं। कवक-सूत्रा पटयुत्त होते हैं। 2. Sexual reproduction The fungi in which the action is found result in the formation of a unicellular multicellular structure called a fungal. All cells of the function body can be capable of reproduction or participate in reproduction while some create a complex structure that protects the cells capable of reproduction. 2. लैंगिक प्रजनन जिन कवकों में पाया जाता क्रिया के फलस्वरूप एककोशिकीय एक बहुकोशिकीय रचना बनती है जिसे फलनपिण्ड कहते हैं। फलन पिण्ड की सभी कोशिकाएं प्रजनन में सक्षम हो सकती हैं अथवा प्रजनन में भाग लेती है जबकि कुछ एक जटिल रचना बनाकर प्रजनन में सक्षम कोशिकाओं को सुरक्षित रखती है। |
उच्च वर्ग के कवकः
- एस्कोमाइसिटीज(Ascomycetes)
- बैसिडियोमाइसिटीज((Basidiomycetes)
- अपूर्ण कवक(Imperfect Fungi)
एस्कोमाइसिटीजः इस वर्ग में कवकों की लगभग 30,000 जातियां सम्मिलित की जाती हैं जिनमें यीस्ट हरित कवक, गुलाबी कवक, चुषक कवक तथा मॉरिल आते हैं।
एस्कोमाइसिटीज का आर्थिक महत्वः
- यीस्ट कोशिकाओं में शर्कराओं के किण्वन की अभूतपूर्व क्षमता होती है। इस प्रक्रिया में ये ऐल्कोहॉल तथा CO2 उत्पन्न करती है। इसलिए उनका उपयोग डबलरोटी या बेकिंग उद्योग तथा ब्रीविंग उद्योग में किया जाता है। इस प्रकार डबलरोटी, खमीर उठाने में, शराब, बीयर सक्सिनिक अम्ल, फैटी अम्ल, इत्यादि के निर्माण में इसका अत्यधिक उपयोग होता है।
- कुछ यीस्ट जैसे कि ऐशिबिया गोस्सिपाई से राइबोफ्रलेविन इत्यादि विटामिन प्राप्त किए जाते हैं।
- पेनिसिलियम की अनेक जातियों से डायस्टेज नामक पाचक विकर तैयार किया जाता है।
- ऐस्पर्जिलस की कुछ जातियों से डायस्टेज नामक पाचक विकर प्राप्त किया जाता है।
- क्लेविसेप्स परप्यूरिया से एरगट प्राप्त की जाती है। इससे LSD नामक नशीला पदार्थ बनाया जाता है।
- पनीर, फल एवं अन्य शर्करायुक्त पदार्थों को यीस्ट खाने के अयोग्य बना देती है।
- ऐस्पर्जिलस तथा पेनिसिलियम नामक कवक अनेक उपयोगी सामग्री जैसे कागज, चमड़ा, खाद्य पदार्थ, यहां तक कि कैमरे व सूक्ष्मदर्शियों के लेन्स का भी नाश करते हैं।
- पेनिसिलियम की जातियां जैसे पेनिसिलियम कैमम्बर्टीइ तथा पेनिसिलियम रोकफोटीई क्रमशः कैमम्बर्ट एवं रोकफोर्ट पनीर बनाने में प्रयुक्त होती है।
- कुछ जातियां जैसे मॉर्शेल्ला एस्कुलैण्टा खाने के काम आती है।
रोगजनक कवक (Disease causing Fungi)
पादक रोग का नाम | रोग जनक कवक |
1. आलू की विलम्बित अंगमारी | फाइटोप्थेरा इन्पफैस्टैनस |
2. क्रूसीफेरी कुल के पौधों सरसों आदि की श्वेत कीट | अल्ब्यूगों कैण्डिडा |
3. राइ में एर्गट | क्लैविसेप्स पप्यूरिया |
4. गेंहू का श्लथ कंड | अस्टीलैगों ट्रिटिसाइ |
5. गेंहू का काला किट | पक्सीनिया ग्रेमिनिस ट्रिटिसाइ |
6. गन्ने का लाल विगलन | कोलिटोट्राइकम फैल्केटम |
7. आलू/टमाटर की प्रगामी अंगमारी | अल्टर्नेरिया सोलेनाई |
8. मक्का का कण्ड | अस्टीलैगों मेयडिस |
9. अनाजी पौधों की मृदुरोमिल आसिता | एक्लेरोस्पोरा ग्रंमिनिकोला |
10. अनाजों का श्वेत चूर्ण रोग | इरिसाइफी ग्रेमिनिकोला |
11. नाशपाती आडू का विगलन | स्क्लेरोटिनिआ फ्रूटीकोला |
मानव रोग | रोग जनक कवक |
12. दाढ़ी एवं बालों में त्वचाकवकार्ति (दाद) | ट्राइकोफायट्रान वेरुकोसम |
13. मुख एवं जीभ में त्वचाकवकार्ति | कैण्डिडा एल्बिकैन्स |
14. कान का त्वचाकवकार्ति | कैण्डिडा एल्बिकैन्स, ऐस्पर्जिलस |
15. मेनिन्जाइटिस | क्रिप्टोकोंकस नीओफोर्मेन्स |
16. एथलीट फुट | टीनिया पेडिस |
17. ऐस्पर्जिलोसिस | ऐस्पर्जिलस फ्रयूमिगेटस |
Lichens
Shack or lichen are a type of friendly that are formed as a result of the association of one or two species of fungi and algae. The fungal component of lichen is called mycobiont and the algae component is phycobiont. The two components live together in such a way that they form the same needle and behave like the same organism. About 13,500 castes of lichens are known.
Economic Importance of Lichens:
- Lichen, especially peptos lichen, erodes rocks and transforms them into soil. After their death their thallus decomposes to form organic material which is mixed with the mineral salts of these rocks to form soil in which other plants can grow.
- Subtle amounts of sulfur dioxide have a negative effect on their growth, so they are good indicators of air pollution. They become extinct in polluted areas.
- Some lichen, such as cetraria islandica and dermatocarpon miniatum, are called stone mushrooms.
- Many lichens such as Cetraria islandica and Cladonia rangiferina are used as animal feed.
- Many types of colours, especially red, blue and violet colours are obtained from them. Litmus is also derived from lichen called rosella tinctoria.
- Lichenin and other chemical substances present in lichen are used as medicines.
- Many fragrances are also obtained from lichens.
शैक(Lichens)
शैक अथवा लाइकेन एक प्रकार के मित्रा जीव हैं जो कि एक कवक तथा शैवाल की एक या दो जातियों के साहचर्य के परिणामस्वरूप बनते हैं। लाइकेन के कवक घटक को माइकोबायॉन्ट तथा शैवाल घटक को फाइकोबायॉन्ट कहते हैं। दोनों घटक परस्पर इस प्रकार रहते हैं कि एक ही सूकाय बना लेते हैं और एक ही जीवधारी की तरह व्यवहार करते हैं। लाइकेनों की लगभग 13,500 जातियों की जानकारी प्राप्त है।
लाइकेनों का आर्थिक महत्वः
- लाइकेन विशेषकर पेप्टोज लाइकेन, चट्टानों का क्षरण करके उन्हें मृदा में परिवर्तन कर देते हैं। इनकी मृत्यु के बाद इनके थैलस विघटित होकर कार्बनिक पदार्थ बनाते हैं जो इन चट्टानों के खनिज लवणों के साथ मिश्रित होकर मृदा बनाते हैं जिसमें अन्य पौधे उग सकते हैं।
- सल्फर डाइ-ऑक्साइड की सूक्ष्म मात्राओं का इनकी वृद्धि पर दुष्प्रभाव पड़ता है अतः ये वायु प्रदूषण के अच्छे सूचक होते हैं। प्रदूषित क्षेत्रों में ये विलुप्त हो जाते हैं।
- कुछ लाइकेन जैसे सिट्रेरिया आइसलैण्डिका तथा डर्मेटोकार्पन मिनिएटम जिन्हें स्टोन मशरूम कहते हैं खाने के काम आते हैं।
- अनेक लाइकेनों जैसे सिट्रेरिया आइसलैण्डिका तथा क्लैडोनिया रेजिंफेरिना पशुओं के चारे के रूप में प्रयुक्त होती है।
- इनसे अनेक प्रकार के रंग, विशेषकर लाल, नीले व बैंगनी रंग प्राप्त किए जाते हैं। लिटमस भी रोसेला टिक्टोरिया नामक लाइकेन से प्राप्त होता है।
- लाइकेनों में विद्यमान लाइकेनिन व अन्य रासायनिक पदार्थों को दवाइयों के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- अनेक सुगंधियां भी लाइकेनों से प्राप्त की जाती है।
Mycorrhiza
Many fungi are found to be symbiotic in the roots of higher grade plants. This association is called fungal root or mycorrhiza.
There are two types of Mycorrhiza.
- Ectomycorrhiza: In this, the fungus fibers form a layer around the root. These fungi reach the fibers in the layer of outer cells in the roots of plants and form a trap.
- Endomycorrhiza: They do not form a covering on the surface of roots. Fungi fibers reach inside the root and grow intracellularly and form annular structures. Fungi use the sugars provided by plants. Fungi do not cause any damage to plants, rather fungi absorb water, nitrogen and minerals from the soil and transport them to the plants.
Orchids: Seeds that grow on other plants are germinated only in the presence of fungi. Many orchids cannot survive in the absence of fungi.
Trees and Bhojpatra trees growing in the forest are also dwarfed due to lack of mycorrhiza. In the presence of mycorrhiza, the same species of these plants can establish parasitic relationships with different species of fungi.
कवक-मूल या माइकोराइजा (Mycorrhiza)
अनेक कवक, उच्च श्रेणी के पौधों की जड़ों में सहजीवी के रूप में पाए जाते हैं। इस साहचर्य को कवक मूल या माइकोराइजा कहते हैं।
माइको राइजा दो प्रकार के होते हैं
- एक्टोमाइकोराइजाः इसमें कवक तन्तु जड़ के चारों ओर पर्त्त बना लेते हैं। पौधों की जड़ों में बाहतम कोशिकाओं की पर्त में ये कवक तन्तु पहुंच कर जाल बना लेते हैं।
- एण्डोमाइकोराइजाः ये जड़ों की सतह पर आवरण नहीं बनाते। कवक तन्तु जड़ के अन्दर पहुंचकर अन्तरकोशिकीय वृद्धि करते हैं और कुण्डलाकार रचनाऐं बना लेते हैं। कवक पौधों द्वारा प्रदत्त शर्कराओं का उपयोग करते हैं। कवक पौधों को कोई क्षति नहीं पहुंचाता बल्कि कवक तन्तु मृदा से पानी, नाइट्रोजन व खनिज पदार्थों को अवशोषित करके पौधों को पहुंचाते हैं।
आर्किड (Orchids): जो कि अन्य पौधों पर अधिपादपी होते हैं, के बीजों का अंकुरण केवल कवकों की उपस्थिति में ही होता है। अनेक आर्किड कवकों की अनुपस्थिति में जीवित नहीं रह सकते।
वनों में उगने वाले चीड़ व भोजपत्रा के वृक्ष भी माइकोराइजा के अभाव में बौने रह जाते हैं। माइकोराइजा की उपस्थिति में इन पौधों की एक ही जाति कवक की विभिन्न जातियों से परजीवी सम्बन्ध स्थापित कर सकती है।
E. जन्तु-जगत (Animal Kingdom) :
According to the Five Kingdom Classification, innumerable organisms come under the animal world which are multicellular and exhibit animal isotropic nutrition, but in the classical classification, unicellular protozoa are also included in them.
Major characteristics of animals:
- These have limited growth. -Some animals are stable. Like Porifera, but most can prevail.
- They have heterogeneous nutrition, that is, they are capable of nutrition in many ways. They are animal-friendly, that is, they ingest food.
- Nervous system: Nervous system is found in all except Protozoa and Porifera. In all except the receiver, the nervous system receives stimuli from the environment.
Habitat: These are mainly aquatic and terrestrial animals. Aquatic animals are of two types. The water of marine and freshwater ponds, ponds, lakes, rivers, etc. is called clean water.
Terrestrial animals are tree-dwellers,Those who live on trees or in air, by making bills respectively. Apart from this, parasitic animals live outside or inside the nutrient body and are called external parasites or internal parasites respectively.There are two types of parasitic animals – i) who complete their life cycle in only one nutrient. A nutritious and ii) Those who complete their life cycle in two nutrients – bipedal.
पंच जगत वर्गीकरण के अनुसार जन्तु-जगत के अन्तर्गत वे असंख्य जीव आते हैं जो बहुकोशिकीय होते हैं और जन्तु समभोजी पोषण प्रदर्शित करते हैं परन्तु परम्परागत वर्गीकरण में एककोशिकीय प्रोटोजोआ भी इनमें सम्मिलित किए जाते हैं।
जन्तुओं के प्रमुख लक्षणः
- इनमें वृद्धि सीमित होती है। -कुछ जन्तु स्थिर है। जैसे पोरिफेरा, परन्तु अधिकांश प्रचलन कर सकते हैं।
- इनमें विषम पोषण होता है अर्थात ये अनेक प्रकार से पोषण करने में समर्थ है। ये प्राणी-समभोजी होते हैं अर्थात् ये भोजन का अंतर्ग्रहन करते हैं।
- तंत्रिका तंत्राः प्रोटोजोआ तथा पोरिफेरा को छोड़कर सभी में तंत्रिका तन्त्रा पाया जाता है। ग्राही को छोड़कर सभी में तन्त्रिका तन्त्रा वातावरण से उद्दीपनों को ग्रहण करता है।
आवास : मुख्य रूप से ये जलीय तथा स्थलीय जन्तु है। जलीय जन्तु दो प्रकार के हैं। समुद्री तथा अलवण जलीय तालाबों, पोखरों, झीलों, नदियां, आदि का जल स्वच्छ जल कहलाता है।
स्थलीय जन्तु बिलकारी, वृक्षवासी वायुवासी होते हैं, जो क्रमशः बिल बनाकर, वृक्षों पर अथवा वायु में रहते हैं। इसके अलावा परजीवी जन्तु पोषक के शरीर के बाहर या अन्दर रहते हैं और क्रमशः बाह्य परजीवी अथवा अन्तः परजीवी कहलाते हैं। परजीवी जन्तु दो प्रकार के होते हैं –i) जो अपना जीवन-चक्र केवल एक पोषक में ही पूर्ण कर लेते हैं। एक पोषीय तथा ii) वे, जो अपना जीवन-चक्र दो पोषकों में पूर्ण करते हैं-द्विपोषी।
जंतु जगत को निम्न भागों में बांटा जा सकता है-
Non Chordata | Chordata |
1. Porifera | 1. Pisces |
2. Coelenterata | 2. Amphibia |
3.Platyhelminthes | 3. Reptile |
4. Aschelminthes | 4. Aves |
5. Annelida | 5. Mammals |
6. Arthropoda | |
7. Mollusca | |
8. Hemichordata |
- Porifera : It consists of spherical animals which are found in saltwater. Numerous holes are found on the body. इसके अंतर्गत छिद्युत जंतु आते हैं जो खारे जल में पाए जाते हैं। शरीर पर असंख्य छिद्र पाए जाते हैं।
- Coelenterata :The creatures are aquatic two-tier, some sun-like creations are found around the mouth. प्राणी जलीय द्विस्तरीय होते हैं मुख के चारों ओर कुछ धगे के तरह की रचनाएं पाए जाते हैं।
- Platyhelminthes : It is not a three-tier body but a body. Digestive system does not develop. Skeletons, respiratory organs are not transport organs. यह तीन स्तरीय शरीर परंतु देहगुहा नहीं होती। पाचनतंत्रा विकसित नहीं होता। कंकाल, श्वसन अंग परिवहन अंग नहीं होते।
- Aschelminthes : It is long cylindrical monolithic worm. The transport organs and respiratory organs are not there but the nervous system develops. यह लंबे बेलनाकार अखंडित कृमि है। परिवहन अंग तथा श्वसन अंग नहीं होते परंतु तंत्रिका तंत्रा विकसित होते हैं।
- Annelida :Tall, thin and divided into segments. Alimentary canal develops fully. Respiration is through the skin.
लंबा पतला और खंडों में बंटा होता है। अहारनाल पूर्णतः विकसित होती है। श्वसन त्वचा के द्वारा होता है। - Arthropoda : Divided into three parts. Head, thoracic abdomen. Its feet are coordinated. तीन भाग में बंटा होता है। सिर, वक्ष उदर। इसके पाद संध्यिक्त होते हैं।
- Mollusca : The body is divided into three parts. Head, Anterior and Foot. Armor is always present in them. The alimentary canal is fully developed. शरीर तीन भागों में विभक्त होते हैं। सिर, अंतराग तथा पाद। इनमें कवच सदैव उपस्थित रहता है। आहारनाल पूर्ण विकसित होता है।
- Hemichordata : All animals of this association are marine, found in water convection system. इस संघ के सभी जंतु समुद्री होते हैं जल संवहन तंत्रा पाया जाता है।
- Fishing class: These are all asexual animals. His heart is bivalent and pumps only impure blood. Respiration is by gills.
- Amphibian class: All these creatures are amphibians. They are asymmetric. Respiration is done through the skin and lungs. The heart is three.
- Reptile class: The actual terrestrial vertebrate animal is the respiratory lung.
- Bird class: Its front legs are transformed into wings to fly. Its heart is four.
- Breast class: Sweat glands and oil glands are found on the skin. All these animals are high and fixed. The heart is four.
- मत्स्यवर्गः ये सभी असमतापी जंतु है। इनका हृदय द्विवेश्मी होता है और केवल अशुद्ध रक्त ही पम्प करता है। श्वसन गिल्स के द्वारा होता है।
- एम्फीबिया वर्गः ये सभी प्राणी उभयचर होते हैं। ये असमतापी होते है। श्वसन त्वचा एवं फेफड़े के द्वारा होता है। हृदय तीन वेश्मी होता है।
- सरीसृप वर्गः वास्तविक स्थलीय कशेरूकी जंतु है श्वसन फेफड़ा द्वारा होता है।
- पक्षी वर्गः इसका अगला पाद उड़ने के लिए पंखें में रूपांतरित हो जाते हैं। इसका हृदय चार वेश्मी होता है।
- स्तनी वर्गः त्वचा पर स्वेद ग्रंथियां एवं तैल ग्रंथियां पाई जाती है। ये सभी जंतु उच्चतापी एवं नियततापी होते है। हृदय चार वेश्मी होता है।